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हल्दीराम की शुरुआत कैसे हुई? | Haldiram ki shuruat kaise hui?

दोस्तों आपको जानकर हैरानी होगी कि एक छोटी सी मिठाई की दुकान से शुरुआत करने वाले हल्दीराम आज दुनिया भर में 80 से ज्यादा देशों में अपने पांव जमा चुके है और आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि हल्दीराम के इस कामयाबी के पीछे की कहानी क्या है और वह कौन सी सफलता की कुंजी है जिन्हें अपनाकर हल्दीराम नाम का यह ब्रांड आज पूरे विश्व का नामी- गिरामी ब्रांड बन चुका है 

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दोस्तो आज के समय में अगर कोई खाने पीने की चीजों की बात होती है तो हमारे दिमाग में सबसे पहले डोमिनोज मैकडॉनल्ड और KFC जैसे विदेशी ब्रांड का नाम आता है जबकि हमारे भारत में एक देसी ब्रांड ऐसा भी है जो आज इन विदेशी कंपनी को कड़ी टक्कर दे रहा है दरअसल हम बात कर रहे हैं हम सबको दिल से अच्छे लगने वाले हल्दीराम भूजिया के बारे में तो चलिए शुरू करते हैं

 

    दोस्तो मैं हूँ आपका दोस्त अमर और मेरे ब्लॉग Amar TechNews में आपका बहुत- बहुत स्वागत है । आशा करता हूँ कि आप सभी अपने अपने कार्य में मस्त होंगे ।     

 

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    हल्दीराम कम्पनी की शुरुआत-

     हल्दीराम कंपनी की शुरुआत बीकानेर ( राजस्थान ) के रहने वाले गंगाबिशन जी अग्रवाल ने वर्ष 1940 में की थी लेकिन इस कंपनी को बनाने का काम उन्होंने साल 1919 में सिर्फ 11 साल की उम्र में ही शुरू कर दिया था  । दरअसल गंगाबिशन जी एक मारवाड़ी परिवार से थे जिन्हें परिवार में प्यार से हल्दीराम कह कर बुलाया जाता था और इन्होनें ने खेलने कूदने की उम्र में ही अपने पिता की भुजिया की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था  । उस समय बीकानेर में भुजिया बहुत ही ज्यादा बिकता था जिसके चलते शहर में हजारों लोग भुजिया बेचा करते थे क्योंकि भूजिया एक ऐसी साधारण सी खाने की चीज थी , जो सस्ते और अच्छी क्वालिटी लगभग हर एक दुकानदार से आसानी से मिल जाती थी । इसलिए असली मुकाबला दाम का नहीं बल्कि भूजिया की गुणवता का था  

     

    काम के प्रति जिम्मेवारी-

    दोस्तों हल्दीराम जी की बात करें तो वे उस समय अपने पिता के दुकान में सब्जी काटने और साफ-सफाई जैसे छोटे-मोटे काम किया करते थे लेकिन उनकी दिलचस्पी हमेशा से ही अच्छी से अच्छी भुजिया बनाने के काम को सीखना था  । इस कारण हल्दीराम जी के पिताजी भी भुजिया ही बेचा करते थे व भुजिया की रेसिपी को इस परिवार की बहू ने तैयार किया था  

     

    स्पैशल भुजिया बनाने का आइडिया -

    कहते हैं कि उन्होंने जब वह भुजिया बना कर परिवार के लोगों को खिलाई तो हल्दीराम जी के पिता के दिमाग में यह युक्ति आई कि यह भुजिया मार्केट में चल सकती है और यही सोचकर उन्होंने बाजार में उस परिवार की बहु द्वारा बनाई गई रेसिपी की भुजिया को बाजार में बेचना शुरू कर दिया । उनकी भुजिया का स्वाद असल मे बहुत अच्छा था जिसकी वजह से उनका भूजिया बनाने का काम तो चल पड़ा लेकिन हल्दीराम जी अपने घर के अकेले ऐसे सदस्य थे जो ना तो इस छोटे से भुजिया बनाने क व्यापार के चलने से खुश थे और ना ही उस भुजिया के स्वाद से ।  हल्दीराम खुद एक ऐसी स्पेशल बीकानेरी भुजिया बनाना चाहते थे जो बाजार से एकदम अलग हो और बाजार का कोई भी प्रोडक्ट उनकी बनाई भुजिया मुकाबला ना कर पाए ।

     

    अपनी भुजिया के ग्राहकों के लिए खोज-

              दोस्तों अपनी इसी बात को सोचकर हल्दीराम जी ने बहुत छोटी उम्र में ही अपने पिता के साथ स्पैशल भुजिया पर एक्सपेरिमेंट करना शुरू कर दिया था ।  काफी सारी चीजों को आजमाने के बाद आखिरकार वे एक ऐसे प्रोडक्ट को बनाने में सफल हो गए जो में उस वक्त के बाजार में किसी के पास नहीं थी । अब हल्दीराम ने अपने पिता द्वारा बनाई गई भुजिया में ऐसे तीन बङे बदलाव किए जिससे उनकी तकदीर ही बदल गई  

     

    अपने ब्राण्ड में पहला परिवर्तन-

    अपने द्वारा बनाई गई भुजिया मे पहला बदलाव उन्होंने यह किया कि वे अपनी भुजिया को बेसन की जगह मोठ की दाल से बनाने लगे  । ऐसा करने से ना सिर्फ भुजिया का स्वाद कई गुना बढ़ा बल्कि वह पहले से कहीं ज्यादा ग्राहकों की पहली पसंद भी हो गया ।  हल्दीराम जी की भुजिया अब एक ऐसी भुजिया बन चुकी थी जिसका स्वाद बाजार की किसी भी भुजिया से पूरी तरह से अलग था ।

     

    अपने ब्राण्ड में दूसरा परिवर्तन-

    इसके अलावा उन्होंने दूसरा बङा परिवर्तन यह किया कि बाजार में जहां दूसरे लोग भुजिया को दो पैसे पर किलो के भाव से बेच रहे थे वहीं हल्दीराम जी ने इस भुजिया का मुल्य अढाई पैसे पर किलो रखा जिससे पूरे बाजार में उनकी भुजिया को एक अलग ही नजर से देखा जाए  

     

    अपने ब्राण्ड के नाम मे बदलाव-

     

    दोस्तों आखिर में हल्दीराम जी ने तीसरा बदलाव यह किया कि उन्होंने बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर अपनी उस भुजिया का नाम डूंगर सिहं रख दिया हालांकि हल्दीराम जी की भुजिया का बीकानेर के महाराजा से कोई भी लेना-देना नहीं था लेकिन फिर भी उनका यह नाम एक ब्रांड अंबैस्टर की तरह साबित हुआ और सिर्फ डूंगर नाम रखने से ही लोग इस भुजिया को शाही खानदान और बहुत ही उंची गुणवता वाली भुजिया मानने लगे ।

     

    अपने व्यवयाय के प्रति ईमानदारी और दूरदर्शिता-

    अब लोगों की नजर में यह भुजिया एक अच्छी गुणवता व मंहगा प्रोडक्ट बन चुकी थी तो ग्राहक 3 पैसे किलो के भाव में भी बिना किसी झिझक के हल्दीराम जी की इस भुजिया को खरीदने लगे । अब लोगों के मन में यह धारणा बन चुकी थी कि वे तीन पैसे किलो के देकर एक अच्छी और बैहतर गुणवता वाली भुजिया खरीद रहे हैं  । इन सब चीजों के चलते हल्दीराम जी की स्पैशल भुजिया बाजारों में एकदम से चलने लगी ।  जहां कुछ ही हफ्तों के अंदर हल्दीराम जी की भुजिया की मांग आसमान छूने लगी  

     

    दोस्तों हल्दीराम जी ने इस भुजिया बनाने के व्यापार की एक मजबूत नींव रखी जिसे आज दुनिया भर में “ हल्दीराम की भुजिया ,, के नाम से जाना जाता है हालांकि दोस्तों हल्दीराम जी ने जो किया वह इस भुजिया कम्पनी के लिए बहुत बङा योगदान था लेकिन उनके बाद कंपनी की बढत का दूसरा अध्याय साल 1960 के आखिर में शुरू हुआ जो इस कंपनी को एक ऐसे लेवल पर ले गया जिसे किसी ने सोचा भी नहीं था दरअसल हल्दीराम जी के पोते और अग्रवाल परिवार ने तीसरी पीढ़ी के दौरान अपने परिवारिक व्यापार को संभाला ।

     

    अपने व्यवसाय के प्रति सजगता-

    उस समय तक अग्रवाल परिवार तीन अलग-अलग हिस्सों में बंट चुका था जिसके चलते अग्रवाल परिवार का भुजिया का व्यापार बीकानेर , कलकता और नागपुर शहर में बहुत ही अच्छे तरीके से अपने पैर जमा चुका था ।  अग्रवाल परिवार का भुजिया का व्यापार कलकता और बीकानेर में तो काफी अच्छा था लेकिन नागपुर के अंदर ही नही बल्कि पूरे महाराष्ट्र के अंदर भुजिया की कोई खास मांग नहीं होती थी ऐसे में शिव किशन जी ने महाराष्ट्र के लोगों की खाद्य पदार्थों की पसंद को जानने के लिए मार्केट रिसर्च का फैसला किया और उन्हें नागपुर में कई महीनों तक शोध करने के बाद इस 2 नई चीजें सामने आई । उन्होने अपने शोध में पाया कि महाराष्ट्र व कलकता के लोग ज्यादातर बीकानेरी भुजिया के बारे में जानते ही नही है  और दूसरी बात उन्होने देखा कि मिठाइयों के नाम पर महाराष्ट्र में सिर्फ बालूशाही गुजराती पेड़ा मैसूर पाक और लड्डू जैसी कुछ गिनी-चुनी मिठाईयां ही बेची जा रही थी  । ऐसे में उन्हें लगा कि महाराष्ट्र की मार्केट में अलग-अलग तरह की मिठाइयों को ला सकते हैं ।

     

    ग्राहकों की पसंद जानना-    

    दोस्तों यही सब सोचकर शिव किशन जी ने अपनी खुद की पसंदीदा मिठाई काजू कतली को महाराष्ट्र के बाजारों में उतार दिया । अब क्योंकि महाराष्ट्र के लोगों के लिए काजू-कतली एक बिल्कुल नई चीज थी इसलिए शिव किशन जी लोगों को उस मिठाई का सैंपल मुफ्त में देने लगे उनकी दुकान पर जो भी ग्राहक आता था वह उसे अपनी काजू कतली जरूर खिलाते । इस तरह उनकी इस मार्केटिंग के चलते सिर्फ कुछ ही दिनों के अंदर काजू कतली पूरे नागपुर में प्रसिद्ध हो गई और इस मिठाई का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि देखते ही देखते इस काजू कतली की मांग आसमान छूने लगी  

     

    हल्दीराम ब्राण्ड की बिक्री में बढोतरी-

              दोस्तों काजू कतली की जबरदस्त सफलता के बाद उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों को बीकानेर और कलकता की दूसरी प्रसिद्द मिठाई का भी सैंपल मुफ्त में ग्राहकों से टैस्ट करवाया । इस तरह शिवकिशन जी की जबरदस्त व्यापारिक दूरदर्शिता  के चलते सिर्फ 3 सालों के अंदर हल्दीराम की मिठाइयों की मांग बढ गई ।  

    हल्दीराम ब्राण्ड की नई मिठाइयां बाजार में उतारना-

    यह तो सिर्फ शुरुआत थी इसके बाद शिवकिशन जी ने देखा कि नागपुर के लोग साउथ इंडियन स्नैक्स जैसे इडली और डोसा को काफी ज्यादा पसंद करते हैं और यह स्नेक्स मार्केट में बहुत ज्यादा पॉपुलर भी थे इसलिए ग्राहक को अपनी दुकान पर केवल लाने के लिए उन्होंने खुद का एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट खोल डाला । जब बहुत सारे लोग उनके रेस्टोरेंट में आने लगे तो उन्होंने धीरे-धीरे अपने मैन्यू में समोसा कचोरी और छोले भटूरे जैसी चीजों को जोङना शुरू कर दिया  

     

    अपने व्यवसाय को मजबूत और भरोसेमंद बनाना -

    दोस्तों अगर हम शिवकिशन जी की व्यापारिक शुरुआत को देखें तो शुरुआत में जब उन्होंने नागपुर की मार्केट में किया था तब मैं लोगों के लिए एक केवल दुकानदार थे जो इसी के चलते लोग उनके ऊपर विश्वास नहीं करते थे इसलिए शिव किशन जी ने पहले महाराष्ट्र के लोगों को उनकी पसंद की डिशेज बैचकर व्यापार के क्षैत्र में एक नई रणनिति का कीर्तिमान स्थापित किया था । जब लोगों को उन पर भरोसा हो गया तब उन्होंने उनके सामने वह नई डिशेस पेश की जो पूरे महाराष्ट्र में किसी के पास नहीं थी और शिवकिशन जी के सामान की बिक्री सिर्फ कुछ ही सालों में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गई ।

     

    प्रीमियम पैकेजिंग और नये स्टोर्स का निर्माण-

     दोस्तों अब इस बात में कोई शक नहीं है कि हल्दीराम जी को इस मुकाम तक पहुंचाने में शिव किशन जी का योगदान काफी ज्यादा अहम रहा था लेकिन जो व्यक्ति हल्दीराम ब्रांण्ड को इस से भी ऊपर लेकर गया वह शिव किशन जी नहीं बल्कि अग्रवाल परिवार के दूसरे सदस्य मनोहर लाल अग्रवाल जी थे दोस्तों मनोहर लाल ने भी इस बिजनेस को आगे बढ़ाने में दो ऐसी चीज अपनाई थी जो हल्दीराम की कहानी में बहुत बड़ा गेम चेंजर साबित हुई थी ।  इसका वह समय था जब कोई भी ब्रांड पैकेजिंग पर ध्यान नहीं देता था ऐसे में मनोहर लाल ने अपने ब्रांड को और ज्यादा फेमस बनाने के लिए हल्दीराम की ब्रांडिंग के साथ महंगी और प्रीमियम पैकेजिंग का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया जिससे लोगों को महसूस हो कि वह मार्केट के विश्वस्नीय़ प्रोडक्ट खरीद रहे हैं ।  ऐसा करने की वजह से लोगों के बीच ना सिर्फ ब्रांड जागरुकता बल्कि साथ ही हल्दीराम के लिए लोगों का विश्वास कहीं ज्यादा मजबूत होगा,  इसके अलावा मनोहर लाल जी की दूसरी व्यापार की दूरदर्शिता रही कि उन्होंने बड़े-बड़े शहरों में हल्दीराम के स्टोर्स खोलने शुरू कर दिए जिसके चलते सिर्फ कुछ ही सालों में हल्दीराम की बिक्री सैकड़ों गुना बढ़ गई और देखते ही देखते उनका यह बिजनेस पूरे भारत के अंदर फैल गया  

     

    दोस्तों इस समय की अगर बात करें तो आज हल्दीराम ब्रांण्ड की कीमत 3 बिलियन डॉलर को भी पार कर चुकी है और हल्दीराम का बिजनेस दुनिया भर के 80 से ज्यादा देशों में फैला हुआ है तो अग्रवाल परिवार की तीन पीढ़ियों ने अपनी मेहनत और लगन से जिस तरह एक मामूली से भुजिया के व्यापार को इतना बड़ा बिजनेस अंपायर बना दिया वाकई में हैरान करने वाला है ।

     

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    हल्दीराम की शुरुआत कैसे हुई? | Haldiram ki shuruat kaise hui? Reviewed by Amar Tech News on सितंबर 05, 2022 Rating: 5

    2 टिप्‍पणियां:

    1. सुंदर एवं रोचक जानकारी पूर्ण लेख ।

      जवाब देंहटाएं
      उत्तर
      1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद सुधा देवरानी जी..... ऐसी ही रोचक जानकारी के लिये हमारे ब्लॉग Amar Tech News पर आते रहें .... आपका दिन शुभ हो ।

        हटाएं

    Dear friend thanks for visit my blog
    Good Luck.

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